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आकांक्षाएँ और अपेक्षाएँ
बंद हैं सरकार के खाकी लिफाफों में
कुआँ खोदने की बनती हैं योजनाएँ
और चोरी हो जाता है कुआँ
सिर्फ एक-एक सींग की ही मिलती है भैंसें
फिर भी और फिर-फिर कागजों पर ही
दूध देती रहती हैं वे अनंतकाल तक
जैसे गुलाम, हरम में करते रहते हैं सेवा
और मेवा चुगते रहते हैं अय्याश सत्तानशीं
बिस्तर की सलवटें बताती हैं, बताती ही हैं आखिर
कहानियाँ अत्याचार की नई-नई कई
सरकार के खाकी लिफाफों में।
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